सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम व्यवस्था और मोदी सरकार की एनजेएसी दोनों समान अवसर के * सिंधांत के खिलाफ हैं।

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सरकार बनाम न्यायपालिका
1993 से सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम व्यवस्था स्थापित किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के साथ चार वरिष्ठ न्यायमूर्ति होते हैं और वही लोग देश के हाई कोर्ट के जज तथा सुप्रीम कोर्ट के जजों के नियुक्ति के संदर्भ में भारत सरकार को नाम भेजते हैं उसके राष्ट्रपति जी वारंट ऑफ अपॉइंटमेंट जारी करते हैं ।1993 से अब तक यह पाया गया कि देश के हाई कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट में कुछ ही घरानों के लोग कब्जा कर के बैठे हैं क्योंकि कोलेजियम व्यवस्था अपने अपने लोगों पर ही नजर डालती है जबकि उनसे कितने योग्य व्यक्ति हाई कोर्ट जज बनने के काबिल होते हैं उन पर कोलेजियम व्यवस्था की नजर नहीं पहुंचती। वही मोदी सरकार 2015 में नेशनल जुडिशल अपॉइंटमेंट कमीशन (एनजेएसी ) का कानून लाई थी जिसमें सुप्रीम कोर्ट के तीन वरिष्ठ जज,प्रधानमंत्री ,कानून मंत्री और जो समाज सेवक के होते। जिसको सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती के केस में प्रतिपादित हुए बेसिक स्ट्रक्चर का सिद्धांत लागू करके एनजेएसी को रद्द कर दिया तब से लेकर के आज तक न्यायपालिका और सरकार में तकरार बढ़ता चला जा रहा है।
अभी हाल ही में देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ कहा कि संसद जब कानून बनाती है तो कई बार सुप्रीम कोर्ट उसे खारिज कर देती है क्या संसद के बनाए हर कानून पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर होगी तभी वह कानून मान्य होगा?
वहीं लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरलाजी ने कहा कि न्यायपालिका को अपनी संवैधानिक सीमाओं का सम्मान करना चाहिए उन्होंने कहा कि हम न्यायपालिका का सम्मान करते हैं और इसकी स्वतंत्रता को रेखांकित करते हैं लेकिन केवल विधायिका को कानून बनाने का अधिकार है और वह सर्वोच्च है वही
देश के कानून मंत्री श्री किरण रिजू जी जी कई बार सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम व्यवस्था पर सवाल उठाए और कहे कि इस व्यवस्था में पारदर्शिता नहीं है। उन्होंने यहां तक भी कहा कि विश्व में कोई ऐसा देश नहीं है कि जज ही जज को नियुक्त करते हैं । यह देखा गया भारत सरकार कानून मंत्री,उपराष्ट्रपति और अन्य लोगों से जजों के खिलाफ आलोचना करके सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम व्यवस्था को खत्म करके अपनी एनजेएसी को देश के ऊपर थोपना चाहती है।
केशवानंद भारती का केस आज 50 साल बाद भी बहुत अहम है
AIR 1973 SC 146
केरल के एडमिन मठ के प्रमुख
केशवानंद भारती थे। वर्ष 1971 में केरल सरकार ने भूमि सुधार कानून बनाए और इसके बाद सरकार ने मठ पर कई सारी प्रबंध पाबंदियां लगाना शुरु कर दी तब केशवानंद भारती ने केरल सरकार के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।उनका कहना था कि संविधान के अनुच्छेद 26 के अनुसार उन्हें धार्मिक कर्म करने का अधिकार देता है और राज्य सरकार उनके संवैधानिक अधिकार में दखल दे रही है उस समय सुप्रीम कोर्ट के 13 जजों की विशेष पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 368 का परीक्षण किए थे और उसके पहले आईसी गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य 1967 AIR SC 1463 के मामले में 11 जजों की पीठ ने यह फैसला दिया था कि सरकार संविधान के मौलिक अधिकारों को संशोधन नहीं कर सकती है जब केशवानंद भारती का केस आया तब सुप्रीम कोर्ट की विशेष पीठ के 13 जनों के सामने यही प्रश्न था क्या संसद सर्वोच्च है और क्या उसको संविधान के किसी भी पार्ट को संशोधित करने का अधिकार है । उस समय 13 जजों में से 7 मुकाबले 6 जजों ने यह फैसला दिया कि संसद संविधान के किसी भी भाग का संशोधन कर सकती है बशर्ते उस संशोधन से संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर नष्ट न हो।तब से सुप्रीम कोर्ट के सामने जब जब इस तरह के मामले आते हैं तब तब केशवानंद भारती का केस जरूर देखा जाता है।
2015 में मोदी सरकार नेशनल जुडिशल अपॉइंटमेंट कमीशन (एनजेएसी) का कानून लाइ थी। सुप्रीम कोर्ट में यह चैलेंज किया गया और पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने यह पाया की नेशनल जुडिशल अपॉइंटमेंट कमीशन (एनजेएसी) संविधान के मूलभूत मूलभूत ढांचे को नष्ट करती है जिसमें केसवानंद भारती के केश का हवाला दिया गया और इस प्रकार एनजेएसी को रद्द कर दिया गया तब से भारत सरकार और न्यायपालिका में तकरार बढ़ता चला जा रहा है।
मोदी सरकार न्यायपालिका पर भी कब्जा करना चाहती है
2014 से यही देखा जा रहा है कि मोदी सरकार जितनी भी संवैधानिक संस्थाएं इस देश में हैं खासकर सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स ,एनआईए, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो,निर्वाचन आयोग को अपनी मुट्ठी में कब्जा करके देश के विपक्षी पार्टियों के खिलाफ प्रयोग करके संविधान के खिलाफ सामंतवादी सोच के तहत शासन कर रही है। कई मामले मोदी सरकार के सुप्रीम कोर्ट में खरे नहीं उतरे । मोदी सरकार यह चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में भी उन्हीं लोगों के जज रहे जिससे उनके किसी भी कानून पर उंगली ना उठे और इस प्रकार वह मोदी सरकार देश के हर संवैधानिक संस्थाओं को अपनी जेब में रखकर शासन करना चाहती है।
यूपीएससी की तर्ज पर हाई कोर्ट जजों की नियुक्ति के लिए अखिल भारतीय हाई कोर्ट जुडिशल कमिशन की जरूरत है_
संविधान के अनुच्छेद 14 में समानता और समान अवसर का मूल भूत अधिकार देश के नागरिकों को दिया गया है। कोलेजियम व्यवस्था से जब हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज की नियुक्ति की बात आती है तो उनके पास ऐसा कोई भी दूरबीन नहीं है जो हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति के संदर्भ में संविधान के अनुच्छेद 217 के शर्तों को पूरा करने वाले सभी के पास पहुंच जाए। अब तक यही देखा गया है कि कॉलेजियम व्यवस्था की दूरबीन अपनी अपने लोगों के पास पहुंचती है जिसके कारण देश के बहुत बड़ी आबादी अर्थात पचासी परसेंट लोगों के खिलाफ हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा लगभग बंद कर दिया गया है। भारत सरकार का एनजेएसी भी कम बेसी कोलेजियम व्यवस्था के समान है। उसमें भी देश के नागरिक जो संविधान के अनुच्छेद 217 का पात्रता रखते हैं उनको शामिल होने का अवसर नहीं मिलेगा। यही सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम व्यवस्था और भारत सरकार के एनजेएसी में सबसे बड़ा दोष है। संविधान में समानता का अधिकार बहुत ही महत्वपूर्ण है जिसको सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम व्यवस्था नकारते आई है और भारत सरकार भी एनजेएसी के माध्यम से समानता के अधिकार को नकारना चाहती है जैसा कि वह अन्य मामलों में करती है।
लोक समाज पार्टी का विजन
हाई कोर्ट जजों की नियुक्ति के संदर्भ में लोक समाज पार्टी का चिंतन यह है कि यूपीएससी की तर्ज पर हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए अखिल भारतीय हाई कोर्ट जुडिशल कमिशन बनाया जाए उसमें देश के 15 से 20 प्रॉमिनेंट ला प्रोफेसरों को जिम्मेदारी दी जाए और उनके माध्यम से हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए लिखित परीक्षा का आयोजन कराए जाए। जो परीक्षा में पास हो वह हाईकोर्ट जज बने। मैं समझता हूं इस व्यवस्था से किसी को भी चाहे वह सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम हो या भारत सरकार हो कोई आपत्ति नहीं होना चाहिए लेकिन परेशानी यह है कि जब यूपीएससी के तर्ज पर अखिल भारतीय हाई कोर्ट जुडिशल कमिशन बन जाएगा तब उसके माध्यम से इन लोगों के अपने-अपने जो अपात्र लोग होंगे वे हाईकोर्ट जज नहीं बन पाएंगे क्योंकि उसमें लिखित परीक्षा देना होगा जो पास होंगे वही हाई कोर्ट जज बन पाएंगे।
मौखिक परीक्षा का अंक 10 होना चाहिए
यह देखा गया है कि आईएएस आईपीएस मे जो व्यक्ति लिखित परीक्षा पास कर लेते हैं उनको मौखिक परीक्षा भी देनी होती है जिसका अंक 200 अथवा 250 होता है। मौखिक परीक्षा में ही जो यूपीएससी के चेयरमैन/सदस्य होते हैं वहां पर संविधान के मूल भावना समानता का अधिकार को ताक पर रख देते हैं और अपने लोग अगर कम नंबर पाए हैं तो उनको ज्यादा नंबर देकर के पास कर देते हैं वही जो दूसरे जाति के लोग होते हैं उनको कम नंबर देकर के फेल करने की प्रक्रिया अक्सर सुनी जाती है ।क्योंकि हाईकोर्ट जजों के मामले में भी ऐसा नहीं होना चाहिए कि वहां पर भी अपना अपनापन पहुंच जाए जैसा कि कोलेजियम व्यवस्था और भारत सरकार के एनजेसी में निहित है।तो लोक समाज पार्टी का इसमें मानना है कि लिखित परीक्षा के पास बाद मौखिक अंक मात्र 10 होना चाहिए जिससे कोई सदस्य या अध्यक्ष अपने लोगों के लिए कोई एक तरफा बात न कर पाए अगर ऐसा होता है तो वास्तव में संविधान का पालन होगा सबको अवसर मिलेगा लोक समाज पार्टी इस कॉलेजियम व्यवस्था के खिलाफ कई बार धरना प्रदर्शन कर चुकी है अभी हाल ही में 15 दिसंबर 2022 को जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करके भारत सरकार के प्रधानमंत्री, कानून मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को ज्ञापन देकर किया गया जिसमे यह मांग किया गया कि हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति के लिए लिखित परीक्षा का आयोजन किया जाए। आगे भी लोक समाज पार्टी लिखित परीक्षा करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में प्रदर्शन करेगी चाहे इसका परिणाम कुछ भी हो।
गौरी शंकर शर्मा ( ऐडवोकेट)
राष्ट्रीय अध्यक्ष लोक समाज पार्टी
8920651540 &9911140170
वेबसाइट
www.loksamsjparty.com